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मन्‍हजी मसाईल के बयान में ईल्‍मी सिलसिला

شمولیت
اپریل 27، 2020
پیغامات
513
ری ایکشن اسکور
167
پوائنٹ
77
بسم اللہ الرحمٰن الرحیم
الحمدُ للهِ ربِّ العالمين، وَ لَا عُدْوَانَ إِلَّا عَلَى الظَّالِمِينَ، وَ اَشْهَدُ اَنْ لاَاِلهَ اِلاَّ اللهُ وَحْدَهُ لاَ شَرِيْكَ لَهُ الْمَلِكُ الْحَقُّ اْلمُبِيْنَ، وَاَشْهَدُ اَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُهُ وَرَسُوْلُهُ إِمَامُ الْأَوَّلِيْنَ وَ الْآٰخِرِيْنَ، أَمَّا بَعْدُ:

तमाम तारीफें अल्लाह ही के लिये हैं, और अच्छा अंजाम परहेज़गारों के लिये है, और ज़ालिमों के सिवा किसी से कोई दुश्मनी नहीं, और मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं, वह अकेला है उसका कोई शरीक नहीं, और वही बाशाह, हक़ और मुबीन है, औ मैं गवाही देता हूं कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उसके बंदे और रसूल हैं, जो कि पहलों और बाद वालो के ईमाम हैं, अम्माबाद

यह एक सौती सिलसिला है, बाज़ ऐतक़ादी और मन्हजी मसाईल के बयान में अल्लाह तआला ने हमें इख्तिलाफ और तनाज़े से पुरी तरह से खबरदार किया है, पस उस पाक ज़ात का इरशाद है
وَأَطِيعُوا اللَّهَ وَرَسُولَهُ وَلَا تَنَازَعُوا فَتَفْشَلُوا وَتَذْهَبَ رِيحُكُمْ وَاصْبِرُوا إِنَّ اللَّهَ مَعَ الصَّابِرِينَ [1]


तर्जुमा: और अल्लाह की और उसके रसूल की इताअत करते रहो, आपस मं झगड़ा ना करो वरना बुज़दिल हो जावगे और तुम्हारी हवा उखड़ जाऐगी और सब्र से काम लो, यक़िनन अल्लाह तआला सब्र करने वालों के साथ है।

इसके साथ-साथ उसने हमें जमाअत के साथ जुड़े रहने का भी हुक्म दिया है और उसके शान को बढ़ा चढ़ा कर बयान किया है। चुनांचे नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है:​
عليكم بالجماعة [2]
तर्जुमा: तुम पर जमाअत के साथ जुड़े रहना लाज़िम है।

और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है:​
يد الله مع الجماعة [3]
तर्जुमा: अल्लाह का हाथ जमाअत के साथ है।

और आपका इरशाद है:​
وإياكم والفرقة؛ فإن الشيطان مع الواحد، وهو من الاثنين أبعد[4]
तर्जुमा तुम तफर्रक़ाबाज़ी से बच कर रहो बेशन शैतान अकेले के साथ होता है, जबकि वह दो से निसबतन दूर होता है।

और एक हदीस में आया है जिसे ईमाम तिर्मिज़ी रहिमहुल्लाह ने बयन किया है और उसे सहीह क़रार दिया है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है:
وأنا آمركم بخمس أمرني الله بهن، السمع والطاعة، والجهاد والهجرة والجماعة، فإن من فارق الجماعة قيد شبر فقد خلع ربقة الإسلام من عنقه[5]
तर्जुमा: मैं तुम्हें इन पांच चीज़ों का हुक्म देता हूं जिनका मुझे अल्लाह ने हुक्म दिया है वह यह हैं: (1) बात सुनना (2) उसे बजा लाना (3) जिहाद करना (4) हिजरत करना (5) जमाअत के साथ जुड़े रहना। पस जिसने जमाअत को बालिश्त भर भी छोड़ा तो उसने इस्लाम का क़लादाअ अपनी गर्दन से उतार दिया।

फित्ने इख्तिलाफ और तनाज़े के बाज़ असबाब

  • इख्तलाफ और तनाज़े का पहला सबबः

“सल़फे उम्मत के फहम के साथ किताब व सुनत के इल्तज़ाम को छोड़ देना और ख्वाहिशात और लोगों की बातों का सहारा लेना”

अल्लाह तआला का फरमान है:


وَاعْتَصِمُوا بِحَبْلِ اللَّهِ جَمِيعًا وَلَا تَفَرَّقُوا [6]
तर्जुमा: अल्लाह तआला की रस्सी को मज़बूती से थामे रखों और तफर्रका बाज़ी ना करो।
इरशादे बारी तआला है:
وَكَيْفَ تَكْفُرُونَ وَأَنْتُمْ تُتْلَى عَلَيْكُمْ آيَاتُ اللَّهِ وَفِيكُمْ رَسُولُهُ وَمَنْ يَعْتَصِمْ بِاللَّهِ فَقَدْ هُدِيَ إِلَى صِرَاطٍ مُسْتَقِيمٍ [7]
तर्जुमा: तुम क्योंकर कुफ्र करते हो जबकि तुम पर अल्लाह की आयात पढ़ी जाती है और रसूल तुम्हारे दर्मियान मौजुद हैं, और जिसने अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से थाम लिया तो वह तहक़ीक़ सिधे रास्ते की तरफ हिदायत पा गया।
रसूल अल्लाह सल्लल्लहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है:
تركت فيكم ما إن تمسكتم به لن تضلوا بعدي أبدا: كتاب الله وسنتي[8]
तर्जुमा: मैं तुम में वह चीज़ें छोड़ कर जा रहा हूं कि अगर तुम उसे मज़बूती से थामें रखोगे तो मेरे बाद कीाी गुमराह ना होगे, वह अल्लाह की किताब और मेरी सुन्नत है।
सहीह मुस्लिम में अबु हुरैरा रज़िअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया:
قال: قال رسول الله ﷺ: «إن الله يرضى لكم ثلاثا، ويكره لكم ثلاثا؛ فيرضـى لكم أن تعبدوه ولا تشـركوا به شيئا، وأن تعتصموا بحبل الله جميعا ولا تفرقوا، ويكره لكم قيل وقال، وكثرة السؤال، وإضاعة المال[9]
तर्जुमा: बेशक अल्लाह तआला तुम्हारे लिये तीन चीज़ों को पसंद और तीन चीज़ों को नापसंद फरमाता है, वह तुम्हारे लिये पसंद करता है कि तुम उसकी ईबादत करो आर उसके साथ किसी को शरीक ना ठहराव और उसकी रस्सी को सब मिल कर मजबूती से थामें रखो और तफर्रक़ा ना फैलाव और वह तुम्हारे लिये बहस व मुबाहिसा, सवालों की कसरत और माल की ज़ियाकारी को नापसंद फरमाता है।
और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब खिताब फरमाते थे तो यूं फरमाया करते थे:​
أما بعد: فإن أحسن الحديث كتاب الله، وأحسن الهدي هدي محمد ﷺ، وشـر الأمور محدثاتها[10]
तर्जुमा: अम्मा बाद, बेशक सबसे बहतरीन बात अल्लाह तआला की किताब है, और सबसे बहतरीन हिदायत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हिदायत है, और बदतरीन अमूर वह हैं जो नए नए पैदा करदा हैं।
इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहु तआला अन्हुमा ने फरमाया:​

أمر الله المؤمنين بالجماعة ونهاهم عن الاختلاف والفرقة، وأخبرهم أنه إنما هلك من كان قبلهم بالمراء والخصومات في دين الله تعالى


अल्लाह तआला ने अहले ईमान को लुज़ूमे जमाअत का हुक्म दिया है और इख्तिलाफ और तफर्रक़ाबाज़ी से मना फरमाया है, और उसने उन्हें बतला दिया दिया है कि उसने उनसे पहले लोगों को महज़ अल्लाह तआला के दीन में ख्वामख्वाह के लड़ाई झगड़े के सबब हलाक कर डाला।

और जलील अलक़द्र ताबई इब्ने शहाब अज़् ज़ाहिरी रहिमहुल्लाह ने फरमाया:​

قال: كان من مضـى من علمائنا يقولون: الاعتصام بالسنة نجاة

हमारे गुज़रजाने वाले उलेमा फरमाया करते थे कि सुन्नत को मज़बूती से थामे रखने में ही निजात है।

ईमाम औज़ाई रहिमहुल्लाह ने फरमाया:​

عليك بآثار من سلف وإن رفضك الناس، وإياك ورأي الرجال، وإن زخرفوه بالقول؛ فإن الأمر ينجلي وأنت على طريق مستقيم

तुम पर सलफ के नक्शे क़दम पर चलना लालि़म है, अगरचे लोग तुम्हारा इंकार ही कर दें, और लोगों की राह से बच कर रहो, अगरचे वह उसे बातों से मज़ीद कर दें, बेशक मुआमला बिलआखिर निखर कर सामने आजाएगा और तुम सीधे रास्ते पर होगे।
शैख अल इस्लाम इब्ने तैमिया रहिमहुल्लाह ने फरमाया:
وأهل السنة والجماعة يتبعون الكتاب والسنة، ويطيعون الله ورسوله، فيتبعون الحق، ويرحمون الخلق[11]
अहले सुन्नत वल जमाअत किताब व सुन्नत की इत्तेबा करते हैं, और अल्लाह और उसके रसूल की इताअत करते हैं, फिर वह हक़ की पैरवी करते हैं और मख्लूक़ पर रहम करते हैं।
और आप रहिमहुल्लाह ने मज़ीद फरमाया:​

والفتنة والفرقة لا تقعان إلا من ترك ما أمر الله به، والله تعالى أمر بالحق والعدل وأمر بالصبر، والفتنة تكون من ترك الحق أو من ترك الصبر

फित्ना और तफर्रक़ा सिर्फ उसी वक़्त पैदा होता है जब किसी मुआमले में अल्लाह तआला के हुक्म को छोड़ दिया जाता है, जबकि अल्लाह तआला ने हक़ और अद्ल का हुक्म दिया है और सब्र का हुक्म दिया है, जबकि फित्ना हक़ को छोड़ देने और सब्र को तर्क कर देने से पैदा हुआ है। (आप रहिमहुल्लाह की बात खत्म हुई)​

  • इख्तिलाफ और तनाज़े का दुसरा सबब:

“बाज़ कम ईल्म लोगों और कच्चे तालिबे ईल्मों की तरफ से सुन्नत और बिदअत के दर्मियान तमीज़ ना करना।”

वह लोग कि जो खुद को अइम्माऐ मुज्तहिदीन की सफों में जा खड़ा करते हैं, पस आप उन में से हर एक को पाऐंगे कि वह खुद ही को हिदायत याफ्ता गुमान करता है और यही समझता है कि सुन्नत सिर्फ उसी के साथ है और जो उसका मुखालिफ है वह गुमराह और बिदअती है, और बाज़ औक़ात तो वह उसे काफिर भी कह देता है, पस उससे वह तफर्रक़ाबाज़ी और श़र पनपता है कि जिसे अल्लाह ही जानता है। सुन्नत तो वह है कि जिसका अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हुक्म दिया है, और बिदअत वह है कि जिसे अल्लाह सुब्हानहु व तआला ने अपने दीन में रखा ही नहीं। तहक़ीक़ उस पाक ज़ात का इरशाद है:
فَاسْأَلُوا أَهْلَ الذِّكْرِ إِنْ كُنْتُمْ لَا تَعْلَمُونَ[12]
तर्जुमा: पस अहले ज़िक्र से सवाल करो अगर तुम नहीं जानते।
ईमाम बुखारी और ईमाम मुस्लिम रहिमहुमा अल्लाह ने अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस रज़िअल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत किया है कि वह फरमाते हैं कि मैंने रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह फरमाते हुए सुना कि:​
إن الله لا يقبض العلم انتزاعا ينتزعه من العباد، ولكن يقبض العلم بقبض العلماء، حتى إذا لم يبق عالما، اتخذ الناس رءوسا جهالا، فسئلوا فأفتوا بغير علم، فضلوا وأضلوا[13]
तर्जुमा: बेशक अल्लाह ईल्म को ऐसे नहीं उठाएगा कि बंदों के सीनों से उसे खेंच निकाले बल्कि अल्लाह अहले ईल्म को मौत देकर ईल्म को उठाएगा, यहां तक कि जब कोई भी आलिम बाक़ी ना रहेगा तो लोग जाहिलों को अपना पैशवा बनालेंगे, पस वह उनसे मसाईल पूछेंगे और वह बग़ैर ईल्म के फतवा दें गे चुनांचे वह खुद भी गुमराह होंगे और दुसरों को भी गुमराह करेंगे।
मुहम्मद बिन सीरीन रहिमहुल्लाह ने फरमायाः​

إن هذا العلم دين، فانظروا عمن تأخذون دينكم

बेशक यह ईल्मे दीन है, पस तम देखते रहो कि तुम अपना दीन किस से हासिल कर रहे हो।

गुमराही के सरग़नों यानी अहले बिदअत की एक खस्लत यह भी है कि वह अपने बातिल को गूंजदार शरई ईबारतों के साथ पेश करते हैं जैसा कि जोहरे तौहीद की हिफाज़त, मिल्लते इब्राहीम और तौहीदे खालिस वग़ैराह वग़ैराह। जैसा कि खवारिज ने अली बिन अबी तालिब रज़िअल्लाहु अन्हु से कहा था لا حكم إلا لله यानी अल्लाह के सिवा किसी की कोई हुक्मरानी नहीं और यह भी कहा था لا نحكم الرجال، نريد حكم الله कि हम लोगों के ज़रिये फैसला नहीं करते बल्कि हम अल्लाह का फैसला चाहते हैं।

और यह अक़वाल अहले ईल्म के यहां नहीं चल सकते जैसा कि जाली दिनार माहिर सर्राफ के यहां नहीं चल सकते। तहक़ीक़ अली रज़िअल्लाहु अन्हु हुरूरिया के इस कलाम का मतलब समझ चुके थे और आप पर उनका यह क़ौल यानी لا حكم إلا لله कारगर साबित ना हो सका जैसा कि जाहिलों पर कारगर साबित हुआ।

चुनांचे आप रज़िअल्लाहु अन्हु ने फरमाया:
لا حكم إلا لله، {فَاصْبِرْ إِنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ وَلَا يَسْتَخِفَّنَّكَ الَّذِينَ لَا يُوقِنُونَ}[14]، فما تدرون ما يقول هؤلاء؟ يقولون: لا إمارة، أيها الناس، إنه لا يصلحكم إلا أمير بر أو فاجر
तर्जुमा: बेशक हुक्म तो अल्लाह तआला ही का है, यक़िनन अल्लाह का वादा सच्चा है। और जो लोग यक़िन नहीं करते वह तुझे अल्का ना करने पाऐं।
पस तुम लोग जानते हो यह क्या कह रहे है? यह कह रहे हैं कि कोई ईमारत नहीं है, ऐ लोगों तुम्हारी इस्लाह एक अमीर ही कर सकता है चाहे वह नेक हो या बद।


सहीह मुस्लिम में रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ग़ुलाम उबैदुल्लाह बिन अबी राफै रज़िअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि जिस वक़्त हुरूरिया ने खुरूज किया तो वह अली बिन अबी तालिब रज़िअल्लाहु तआला अन्हु के साथ थे, तो उन्होंने कहा لا حكم إلا لله कि अल्लाह के सिवा किसी की कोई हुक्मरानी नहीं तो अली रज़िअल्लाहु तआला अन्हु ने फरमाया:
كلمة حق أريد بها باطل، إن رسول الله ﷺ وصف ناسا إني لأعرف صفتهم في هؤلاء يقولون الحق بألسنتهم، لا يجاوز هذا منهم (وأشار ؓ إلى حلقه) من أبغض خلق الله إليه[15]
यह बात तो बरहक़ है लेकिन इससे बातिल मुराद लिया जा रहा है, बेशक रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कुछ लोगों की निशानियां बयान की थीं और वह निशानिया मैं उनमें देख रहा हूं कि वह अपनी ज़बानों से हक़ बात तो कहेंगे लेकिन वह उनके यहां से नीचे नहीं उतरेगी (यह कह कहते हुए आप रज़िअल्लाहु तआला अन्हु ने अपनी हलक़ की तरफ इशारा किया और फरमाया कि) वह अल्लाह तआला की मखलूक़ में सब से बदतरीन लेाग होंगे।
ईमाम नववी रहिमहुल्लाह ने फरमाया:​

قالوا لا حكم إلا لله، قال علي: كلمة حق أريد بها باطل) معناه: أن الكلمة أصلها صدق، قال الله تعالى: { إِنِ الْحُكْمُ إِلَّا لِلَّهِ} [يوسف: 40]، لكنهم أرادوا بها الإنكار على علي ؓ في تحكيمه

उनका यह कहना कि “अल्लाह के सिवा किसी की हुक्मरानी नहीं” और अली रज़िअल्लाहु तआला अन्हु का यह कहना कि “यह कलिमा तो हक़ है लेकिन इससे बातिल मुराद लिया जा रहा है” इसका माना यह है कि यह कलिमा अपनी अस्ल में तो सच्चा है कि अल्लाह तआला का फरमान हैः
إِنِ الْحُكْمُ إِلَّا لِلَّهِ[16]
तर्जुमा: हाकमियत सिर्फ और सिर्फ अल्लाह ही के लिये है।
लेकिन उन्होंने इस कलिमा के साथ अली रज़िअल्लाहु तआला अन्हु के फैसले का इंकार करना चाहा।
(आप रहिमहुल्लाह की बात खत्म हुई)।

इसलिये हक़ के तलबगार पर यह ज़रूरी है कि वह हक़ को उसके सही ठिकाने से ही तलाश करे, ना कि अफवाहें फैलाने वाले या कच्चें तालिबे ईल्मों से और ना ही गुमराही के उलेमा से।

सुफियान बिन उयैयना और आपके मासिवा दिगर अहले ईल्म जैसा कि ईमाम अहमद, अब्दुल्लाह बिन मुबारक रहिमहुम अल्लाह फरमाया करते थे:
إذا اختلف الناس فانظروا ما عليه أهل الثغر؛ فإن الله سبحانه وتعالى يقول: {وَالَّذِينَ جَاهَدُوا فِينَا لَنَهْدِيَنَّهُمْ سُبُلَنَا}[17]

जब लोग इख्तिलाफ के शिकार हो जाऐं तो उसे देखों के जिसपर अहले मोर्चा कारबंद हैं, बेशक अल्लाह सुब्हानहु व तआला ने फरमायाः

وَالَّذِينَ جَاهَدُوا فِينَا لَنَهْدِيَنَّهُمْ سُبُلَنَا

तर्जुमा: वो लोग जो हमारे रास्ते में जिहाद करते हैं, हम ज़रूर बिलज़रूर उन्हें अपने रास्ते की हिदायत से नवाज़ेंगे। (आप रहिमहुल्लाह की बात खत्म हुई)।

पस ऐ मुजाहिद भाई! तुम कैसे मौर्चों पर मौजूद उन उलेमा को छोड़ सकते हो कि जो सरज़मीने जिहाद और सरज़मीने इस्लाम की तरफ रूख्सते सफर बांध चुके हैं? पस तुम क्योंकर साफ शफ्फाक चश्मे को छोड़कर उन लोगों से अपना दीन हासिल करने जाते हो जो जज़ीरा अरब और उसके मासिवा दिगर खि़त्तों के तवाग़ीत की गोद में बैठे हैं? ना तो उन्होंने उनकी तक्फीर की है ओर ना ही उनपर कोई रद्द किया है, बल्कि वह उनके इर्तकाब कर्दा नवाकिज़ का हुक्म बयान करने की बजाए उनके सिपाहीयों उनके सिक्योरिटी अनासिर और उनकी एजेंसियों के अमले के साथ घुल मिल गए हैं।

पस ऐ मेरे भाई! उनमें से कभी किसी को किसी ताग़ूत की तरफ से जैल में डाल दिये जाने से, धोका मत खा जाना, क्योंकि यह सब कुछ कभी उन्हें और उनके अक़वाल को मज़ीद मशहूर और नुमायां करने के लिये भी होता है और उन्हें जैल में मौजूद भाईयों पर इसलिये भी भेजा जाता है ताकि वह वहां फित्ना बरपा करें और उनके दर्मियान शुकूक व शुबहात फैलाऐं

और अगर यह अहले हक़ व सिद्क़ होते तो बिलाशुबाह उनके पास बहतरीन मौक़ा था कि यह सरज़मीने जिहाद की तरफ निकल जाते और दार अल इस्लाम की तरफ हिजरत कर जाते।

बेशक जो ताग़ूत उन जैसे तक्फीर में ग़ुलू करने वाले मुनाज़िराबाज़ों को पनाह देते हैं और उनकी बिदअत को फैलने के लिये छोड़ दिये रखते हैं, तो वही ताग़ूत उन जहमियों और मुर्जियों को भी पनाह देते हैं और उनकी बिदअत को फैलाने में उनकी मदद करते हैं।

यह सिर्फ इसलिये कि उन दोनों इंतहाओं और दोनों मन्हजों का एक ही नतीजा है, वह यह कि अहले हक़ पर ताअन किया जाए, हिजरत को छोड़ दिया जाए और जिहाद फी सबीलिल्लाह से पीछे बैठ जाया जाऐ।

ऐ मुजाहिद भाई! जब अल्लाह तआला ने तुम्हें तवाग़ीत के अहले इरजाअ अलेमा के जाल से नजात दे दी तो फिर तुम क्योंकर तवाग़ीत के उन उलेमा के जाल में फंसे जा रहे हो? जो ग़ुलू की तरवीज करते हैं और शुबहात को फैलाते हैं, ताकि वह तुम्हें तुम्हारे जिहाद से पीछे बैठा दें और तुम्हें हिजरत से रोक दें ताकि उनके हमनवा अल्लाह तआला के दुश्मन तुम्हारे जंग से पुरअमन हो जाऐं।

और बाज़ उलेमा सलफ ने फरमायाः​

ما أمر الله تعالى عباده بأمر إلا وللشيطان فيه نزعتان: فإما إلى غلو، وإما إلى تقصير؛ فبأيهما ظفر قنع


अल्हाह तआला ने अपने बंदों को जो भी हुक्म दिया है तो शैतान उसमें दो तरह से झगड़ता है, यातो ग़ुलू की तरफ ले जाता है या कोताही की तरफ पस वह दोनों में से किसी एक सूरत में कामयाब हो कर ही रहता है।

पस तुम कैसे अहले ईल्म व फिक़ाह में से उस शख्स के इल्म से सर्फे नज़र कर सकते हो कि जो अपके साथ हथयार उठाऐ हुए है और सफ में क़िताल कर रहे हैं? (यहां वह कच्चे तालिबे ईल्म मुराद नहीं है) और तुम कैसे अपनी अक़्ल और ज़हन को उस श्ख़्स के हवाले कर सकते हो? कि जिसका खुद अपना दीन खतरे में है, जबकि वह खुद तवाग़ीत के साथ सौदे बाज़ी कर के ज़िन्दगी गुज़ार रहा है और वह तुम्हारे लिये दूर से बैठा फैसले सुना रहा है।​

  • इख्तिलाफ और फित्ने का तीसरा सबबः
“सरकशी”

कहा जाता है फलां ने फंला से सरकशी की, यानी उसने उस पर क़ौल या फैल के साथ ज़यादती की और अपनी हद से बढ़ गया

इरशादे बारी तआला हैः
وَمَا تَفَرَّقُوا إِلَّا مِنْ بَعْدِ مَا جَاءَهُمُ الْعِلْمُ بَغْيًا بَيْنَهُمْ [18]
तर्जुमाः और उन्हों ने तफर्रक़ा बाज़ी नहीं की मगर बाद उसके कि उनके पास ईल्म आ चुका था।
इरशादे बारी तआला हैः
فَمَا اخْتَلَفُوا إِلَّا مِنْ بَعْدِ مَا جَاءَهُمُ الْعِلْمُ بَغْيًا بَيْنَهُمْ [19]
तर्जुमाः और उन्होंने इख्तिलाफ नहीं किया मगर बाद इसके कि उनके पास ईल्म आ चुका था।
और इरशादे बारी तआला हैः​
كَانَ النَّاسُ أُمَّةً وَاحِدَةً فَبَعَثَ اللَّهُ النَّبِيِّينَ مُبَشِّرِينَ وَمُنْذِرِينَ وَأَنْزَلَ مَعَهُمُ الْكِتَابَ بِالْحَقِّ لِيَحْكُمَ بَيْنَ النَّاسِ فِيمَا اخْتَلَفُوا فِيهِ وَمَا اخْتَلَفَ فِيهِ إِلَّا الَّذِينَ أُوتُوهُ مِنْ بَعْدِ مَا جَاءَتْهُمُ الْبَيِّنَاتُ بَغْيًا بَيْنَهُمْ فَهَدَى اللَّهُ الَّذِينَ آمَنُوا لِمَا اخْتَلَفُوا فِيهِ مِنَ الْحَقِّ بِإِذْنِهِ وَاللَّهُ يَهْدِي مَنْ يَشَاءُ إِلَى صِرَاطٍ مُسْتَقِيمٍ [20] [البقرة: 213]
तर्जुमा: दर अस्ल लोग एक ही गिरोह थे, अल्लाह तआला ने नबीयों को खुशखबरीयां देने और डराने वाला बनाकर भेजा और उनके साथ बरहक़ किताबें नाज़िल की ताकि वह लोगों के बीच फैसला फरमा दे कि जिनमें उन्होंने इख्तिलाफ किया था और उसमें इख्तिलाफ उन्ही लोगों ने इख्तिलाफ किया जिन्हें वह दी गई थी, बाद इवसके कि उनके पास वाज़ेह दलीलें आ चुकी, आपस की ज़िद व ईनाद की वजह से, पस अल्लाह ने अपने हुक्म से ईमान वालों की इस इख्तिलाफ में भी हक़ की तरफ हिदायत दी और अल्लह तआला जिसे चाहता है सीधे रास्ते की तरफ हिदायत दे देता है।
शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिया रहिमहुल्लाह ने फरमाया:​

الاجتهاد السائغ لا يبلغ مبلغ الفتنة والفرقة إلا مع البغي، لا لمجرد الاجتهاد ... فلا يكون فتنة وفرقة مع وجود الاجتهاد السائغ، بل مع نوع بغي، وكل ما أوجب فتنة وفرقة فليس من الدين، سواء كان قولا أو فعلا ...


उसूली इज्तहाद फित्ना और तफर्रक़ा बाज़ी की हद तक नहीं पहुंचता मगर हद से तजावुज़ के साथ, अलबत्ता एकेला इज्तहाद नहीं, पस फित्ना और तफर्रक़ा बाज़ी उसूली इज्तहाद के साथ नहीं पहुंचते बल्कि हद से तजावुज़ के साथ पहुंचते हैं और हर चीज़ जो फित्ना और तफर्रक़ा बाज़ी का मौजूब हो तो वह दीन में से नहीं है चाहे वह क़ौल हो या फेअल।

और आप रहिमहुल्लाह ने मज़ीद फरमायाः
وعامة ما تنازعت فيه فرقة المؤمنين من مسائل الأصول وغيرها في باب الصفات والقدر والإمامة وغير ذلك: هو من هذا الباب؛ فيه المجتهد المصيب، وفيه المجتهد المخطئ، ويكون المخطئ باغيا، وفيه الباغي من غير اجتهاد، وفيه المقصر فيما أمر به من الصبر[21]
बिलउमूम मुसलमानों के जो फिर्के ईमामत, तक़दीर और सिफात के अबवाब में उसूली मसाईल में इख्तिलाफ का शिकार होते हैं तो यह इसी बाब से है। उसमें कोई मुज्तहित दुरूस्तगी पर भी होता है और कोई मुज्तहिद ख़ता पर भी और ख़ताकार ज़्यादती करने वाला होता है और इसमें इज्तिहाद से हट कर भी ज़्यादती करने वाला होता है और इसमें उस मामले में कोताही करने वाला भी होता है कि जिसमें सब्र का हुक्म दिया गया हो।
बेशक यह सरकशी और ज़्यादती में से ही है कि फरीक़े मुखलिफ पर चढ़ दौड़ा जाए, उसकी नियत पर उंगली उठाई जाए और एक मुसलमान पर ज़ुल्म व ज़्यादती करते हुए बग़ैर किसी दलील के कुफ्र और बिदअत के बोहतान लगा दिये जाऐं।

इब्ने हिब्बान रहिमहुल्लाह ने अपनी किताब में सहीह हदीसे पाक बयान की है कि हुज़ैफा रज़िअल्लाहु तआला अन्हु ने फरमाया कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया:​

«إن ما أتخوف عليكم رجل قرأ القرآن حتى إذا رئيت بهجته عليه، وكان ردئا للإسلام، غيره إلى ما شاء الله، فانسلخ منه ونبذه وراء ظهره، وسعى على جاره بالسيف، ورماه بالشـرك»، قال: قلت: يا نبي الله، أيهما أولى بالشـرك، المرمي أم الرامي؟ قال: «بل الرامي»

तर्जुमा मैं तुम पर उस शख्स के बारे में ख़ैफज़दा हूं कि जो क़ुरआन पढ़ेगा, यहांतक कि उसपर उसकी बहार नज़र आने लगे गी और वह इस्लाम के लिये मुआविन व मददगार होगा और वह उसे इस तरफ बदल डालेगा जहां अल्लाह चाहेगा, पस वह उसे छोड़ देगा और पसे पुश्त डाल देगा और अपने पड़ौसी पर तलवार सूंत लेगा और उसे शिर्क का ताना मारेगा। सहाबी फरमाते हैं कि मैंने अर्ज़ किया: ऐ अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! उन दोनों में से शिर्क के ज़्यादा क़रीब कौन होगा? ताना दिये जाने वाला या ताना देने वाला? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः बल्कि ताना देने वाला।

ईमाम आजरी रहिमहुल्लाह फरमाते हैंः​

إن الله عز وجل بمنه وفضله أخبرنا في كتابه عمن تقدم من أهل الكتابين اليهود والنصارى، أنهم إنما هلكوا لما افترقوا في دينهم، وأعلمنا مولانا الكريم أن الذي حملهم على الفرقة عن الجماعة والميل إلى الباطل الذي نهوا عنه، إنما هو البغي والحسد، بعد أن علموا ما لم يعلم غيرهم، فحملهم شدة البغي والحسد إلى أن صاروا فرقا فهلكوا، فحذرنا مولانا الكريم أن نكون مثلهم فنهلك كما هلكوا، بل أمرنا عز وجل بلزوم الجماعة، ونهانا عن الفرقة، وكذلك حذرنا النبي ﷺ من الفرقة وأمرنا بالجماعة، وكذلك حذرنا أئمتنا ممن سلف من علماء المسلمين، كلهم يأمرون بلزوم الجماعة, وينهون عن الفرقة[22]
बेशक अल्लाह अज़्ज़वजल ने अपने उस फज़ल व अहसान के साथ अपनी किताब में साबिक़ा अहले किताब यानी यहूद व नसारा के बारे में हमें खबरदार किया है कि वह सिर्फ इसी लिये हलाक हो गए कि उन्होंने अपने दीन में तफर्रक़ाबाज़ी की और हमारे मौला करीम ने हमें बताया है कि उन्हें जिस चीज़ ने जमाअत को छोड़ देने पर और उस बातिल की तरफ झुक जाने पर उभारा कि जिससे उन्हें मना किया गया था तो वह सिवाए उसके नहीं कि सिर्फ सर्कशी और हसद था, बाद इसके कि वह वो कुछ भी जान चुके थे कि जो उनके मासिवा नहीं जानते थे। पस उनको सर्कशी और हसद की शिद्दत ने उभारा यहां तक कि वह फिर्क़े फिर्क़ होकर रह गए और हलाक हो गए। पस हमें हमारे मौला करीम ने खबरदार किया है कि हम उनकी तरह होकर हलाक ना हो जाऐं जैसा कि वह हलाक हुए, बल्कि उस जलील व क़द्र ज़ात ने हमें जमाअत को लाज़म पकड़ने का हुक्म दिया है और तफर्रक़ा बाज़ी से मना फरमाया है और इसी तरीक़े से हमें नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने भी तफर्रक़ाबाज़ी से मना किया है और जमाअत का हुक्म दिया है और इसी तरीक़े से उलेमा ए मुस्लिमीन में से हमारे आईम्मा ए सलफ ने भी हमें खबरदार किया है, वह सबके सब जमाअत को लाज़िम पकड़ने का हुक्म देते थे और तफर्रक़ाबाज़ी से मना करते थे। (ईमाम आजरी रहिमहुल्लाह की बात खत्म हुई)।
और हम पुरी सख्ती के साथ हर उस शख्स की तरदीद व तन्क़ीद करते हैं कि जो सर्कशी और ज़्यादती करते हुए उलेमा की तक्फीर करे, मसलन इब्ने क़ुदामा अल मक़दसी, अल-नववी, इब्ने हजर अस्क़लानी और इनके अलावा दिगर उलेमा ए किराम रहिमहुम अल्लाह तआला, कि जिन का ईल्म की इशाअत में और शरीअत की नुसरत में उम्मते मुस्लिमा पर बड़ा अहसान है, बल्कि हम उनके मक़ाम व मर्तबे का तहफ्फ़ुज़ करते हैं, उनके लिये रहमत की दुआ करते हैं और जो उनसे खताऐं और लग्ज़िशें सरज़द हूई हम उनमें उन्हें उज़र देते हैं।

ताबईन के एक ईमाम, ईमाम शोअबी रहिमहु अल्लाह ने फरमाया कि:

كل أمة علماؤها شرارها، إلا المسلمين؛ فإن علماءهم خيارهم[23]
हर उम्मत के उलेमा उसके बदतरीन लोग थे सिवाए मुसलमानों के, कि उनके उलेमा उनकी बहतरीन लोग हैं।
शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिया रहिमहुल्लाह ने फरमायाः
دفع التكفير عن علماء المسلمين وإن أخطئوا هو من أحق الأغراض الشرعية[24]
मुसलमानों के उलेमा से तक्फीर को दूर रखना, अगर्चे वह खता पर ही हों, यह अहम तरीन मक़ासिदे शरीअत में से है।
और शैख अब्दुल्लाह बिन ईमाम व मुजद्दिद मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब रहिमहुल्लाह ने फरमायाः​

ونحن كذلك: لا نقول بكفر من صحت ديانته، وشهر صلاحه، وعلم ورعه وزهده، وحسنت سيرته، وبلغ من نصحه الأمة ببذل نفسه لتدريس العلوم النافعة والتأليف فيها، وإن كان مخطئا في هذه المسألة أو غيرها

और हम भी उसी तरह से हैं, हम उसकी तक्फीर नहीं करते कि जिस का दीन सही साबित हो, उसकी पाकबाज़ी मशहूर हो और उसका ज़ोहद और परहेज़गारी मारूफ हो और उसकी सीरत बहतरीन हो और उसने उलूमे नाफे की तदरीस व तालीफ में अपने जान खत्रपाकर उम्मते मुस्लिमा तक अपनी नसीहत पहुंचाई हो, अगर्चे वह उन मसाईल वग़ैराह में ख़ता पर हो।

और हम जिनकी अच्छाई बयान करते हैं और अपने उपर उनकी हक़ की हिफाज़त करते हैं वह इस्‍लामी रियासत के उमरा हैं, इस्तशहादियों के अमीर, हक़ और तौहीद को बेबांगे दहल कहने वाले, अहले शिर्क और बुत परस्तों से डट कर क़िताल करने वाले शैख अबु मुस्अब अल ज़रक़ावी रहिमहुल्लाह से लेकर पुख्ता अक़ीदे वाले और बुज़ुर्गी के मक़ामात पर खड़े होने वाले शैख व मुजद्दिद अबु उमर अल बग़दादी तक़ब्बलहु अल्लाह और मुफीद तसनीफात व तालिफात वाले आपके वज़ीर शैख व मुजाहिद अबु हम्ज़ा अल मुहाजिर तक़ब्बलहु अल्लाह से गुज़रते हुए काफिरों की सरहदों को तोड़ने वाले और मुन्हरिफ लोगों का क़ल्आ क़मअ करने वाले शैख व मुजाहिद अबु मुहम्मद अल अदनानी तक़ब्बलहु अल्लाह और आलिमे रब्बानी अबु अली अल अंबारी तक़ब्बलहु अल्लह और इस इस्‍लामी रियासत के दिगर उमरा रहिमहुम अल्लाह तआला तक, कि जिन्होंने अल्लाह के रास्ते में अपनी जानों के नज़राने पेश कर दिये, हम उन्हें यूंही गुमान करते हैं और उनका हसीबे अस्ल तो अल्लाह तआला ही है और हम अल्लाह तआला पर किसी की सफाई बयान नहीं करते।

और यह सिलसिला बिइज़िनल्लाही तआला दर्जे ज़ेल उमूर के बयान पर मुश्तमिल होगा:​

  • कुफ्फार व मुश्रिकीन की तक्फीर में तौकुफ का हुक्म
  • तवाईफे मुमतनाह (निफाज़े शरीअत में आड़े आने वाले गिरोहों) का हुक्म और उनमें मुखालिफत करने वाले का हुक्म
  • दार अल कुफ्र तारी (हंगामी तौर पर दार अल कुफ्र क़रार पाने वाले इलाक़ों) में रहने वालों का हुक्म

हम अल्लाह तआला से सवाल करते हैं कि वह इस ईल्मी सिलसिले में बरकत दे और इसे किताब व सुन्नत पर मुजाहिदीन के कलिमे के जमा हो जाने का सबब बनाऐ आमीन।


وَآخِرُ دَعْوَانَا أَنِ الْحَمْدُ لِلّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ۔

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[1] الأنفال: 46
[2] صحیح الترمذي
[3] رواه الترمذي
[4] أيضا
[5] أيضا
[6] آل عمران: 103
[7] آل عمران: 101
[8] الموطأ لمالك
[9] رواه مسلم و أحمد و إبن حبان
[10] رواه مسلم
[11] مجموع الفتاویٰ: جلد: 3، صفحه : 279
[12] النحل: 43
[13] متفق عليه
[14] الروم: 60
[15] مصنف ابن ابی شیبة : 7/562/37931
[16] يوسف: 40
[17] العنكبوت: 69
[18] الشورى: 14
[19] الجاثية: 17
[20] البقرة: 213
[21] الاستقامة: 1/37
[22] الشریعة: 1/37
[23] مجموع الفتاوى: 7/284
[24] مجموع الفتاوى: 35/103
 
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